शाहजहांपुर की अनोखी होली
लोकेशन- शाहजहाँपुर
– यूपी के शाहजहांपुर में मनाई जाने वाली होली पूरे देश में सबसे अनोखी होली होती है। यहाँ जूते मार होली खेली जाती है। होली से 5 दिन पहले ही यहां मस्जिदों को तिरपाल से ढक दिया जाता है। ताकि मस्जिद में रंग न पड़े और कोई संप्रदायिक विवाद न हो इसके लिए शहर में निकलने वाले बड़े लाट साहब और छोटे लाट साहब के जुलूस के रास्ते में पड़ने वाली 32 से ज्यादा मस्जिदों को ढक दिया जाता है। सुरक्षा के लिए मस्जिद के बाहर पुलिसकर्मियों की तैनाती की जाती है साथ ही सुरक्षा व्यवस्था के लिए ड्रोन कैमरे से इस जुलूस की निगरानी की जाती है।
-दरअसल शाहजहांपुर में होली को लेकर 24 जुलूस निकलते हैं। जिनमें दो प्रमुख जुलूस होते हैं। जो कि शहर में निकलते हैं। पहला बड़े लाट साहब का जुलूस दूसरा छोटे लाट साहब का जुलूस। जिसमें एक शख्स को लाट साहब बनाकर भैसा गाड़ी पर बैठा जाता है और फिर उसे जूते और झाड़ू मार कर पूरे शहर में घुमाया जाता है। इस दौरान आम लोग लाट साहब को जूते भी फेंक कर मारते हैं। इस जुलूस में भारी संख्या में लोगो का हुड़दंग होता है। जुलूस में पहले कई बार ऐसा हुआ कि जब मस्जिद में लोगों ने रंग डाल दिया और विवाद की स्थिति पैदा हो गई। इसके बाद से ही जुलूस के रास्ते में पड़ने वाली 32 से ज्यादा मस्जिदों को पूरी तरीके से होली के 5 दिन पहले से ढक दिया जाता है। आपको बता दें कि अंग्रेजों के प्रति अपना आक्रोश प्रकट करने के लिए यहां एक व्यक्ति को अंग्रेज का प्रतीक लाट साहब बनाकर उसे भैंसा गाड़ी पर बिठाया जाता है और फिर जूतों और झाड़ू से पीटा जाता है। संप्रदायिक सौहार्द न खराब हो इसके लिए पुलिस और प्रशासन हर थाना स्तर पर पीस मीटिंग का आयोजन करता है। आपसी सहमति के बाद मस्जिदों को पूरी तरीके से ढक दिया जाता है। फिलहाल यहां जूते मार होली खेलने की परंपरा दशकों पुरानी है।
पुलिस अधीक्षक अशोक कुमार मीणा का कहना है कि 25 तारीख को होली का बड़े लाट साहब और छोटे लाट साहब का जुलूस निकलना है। उसके लिए सुरक्षा को लेकर सारी तैयारियां पूरी कर ली गई है। एक कंपनी आर एफ और एक कंपनी पीएसी इसके अलावा 2000 का फोर्स है। 450 सीसीटीवी कैमरे जिनका फीड हमारे पास है। जुलूस का रूट ड्रोन कैमरे से कवर रहेगा। पूरे सौहार्द के साथ परंपरागत रूप से जुलूस निकाला जायेगा।
वहीं जिला अधिकारी उमेश प्रताप सिंह का कहना है कि दोनों जुलूस के लिए हिंदू समुदाय और मुस्लिम समुदाय के धार्मिक गुरु आए थे। उनके साथ में एक बैठक की गई थी हमने तैयारी पूरी कर ली है। जहाँ तक धार्मिक स्थल को ढकने की बात है ढकने की सावधानी जिससे किसी की धार्मिक भावना आहत न हो इसलिए ढकने की परंपरा चार-पांच सालों से जारी है। हम लोग नजर बनाए रहेंगे।







