जैन विश्व भारती संस्थान के दीक्षांत समारोह में बोले केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री*

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*ज्ञान केवल डिग्री नहीं, आत्मबोध और लोक कल्याण का संकल्प : शेखावत*

 

– *जैन विश्व भारती संस्थान के दीक्षांत समारोह में बोले केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री*जैन विश्व भारती संस्थान के दीक्षांत समारोह में बोले केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री*

– *संयम, अपरिग्रह और अनेकांतवाद को बताया विश्व संकटों का समाधान*

 

*गांधीनगर (गुजरात), 27 अक्टूबर।* केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि ज्ञान की प्राप्ति मात्र रोज़गार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मबोध, लोक कल्याण और सत्य की खोज का एक नया संकल्प है। शेखावत सोमवार को जैन विश्व भारती संस्थान के 16वें दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने समारोह को केवल एक औपचारिक आयोजन न मानते हुए ‘संकल्प का उत्सव’ बताया।

 

अपने संबोधन में केंद्रीय मंत्री शेखावत ने कहा कि भारतीय मनीषा ने शिक्षा को केवल शिरोभूषण (माथे का आभूषण) नहीं, बल्कि आत्म पद्म भूषण की तरह स्वीकार किया है। ‘सा विद्या या विमुक्तये’ – विद्या वही है, जो भीतर की कैद को तोड़कर आत्मा को मुक्ति के मार्ग पर ले जाए। छात्रों द्वारा अर्जित की गई उपाधि कागज की डिग्री मात्र नहीं है, बल्कि उनके हृदय पर अलंकृत हुई एक महान परंपरा की शृंखला है।

 

शेखावत ने भारत की शाश्वत संस्कृति की निरंतरता का श्रेय विचारों के प्रति सहिष्णुता और जैन दर्शन के सिद्धांत अनेकांतवाद को दिया। उन्होंने कहा कि यूनान, मिस्र, रोमा सब मिट गए, लेकिन हमारी हस्ती इसलिए कायम रही, क्योंकि हमने सभी विचारधाराओं का समान रूप से सम्मान किया। वर्तमान वैश्विक संघर्षों पर चिंता जताते हुए शेखावत ने कहा कि अनेकांतवाद ही इस असहिष्णुता के दौर का सटीक समाधान है। उन्होंने छात्रों को सलाह दी कि सत्य के एक स्वरूप को पकड़कर बाकी सभी को अस्वीकार करना, शिक्षा नहीं, बल्कि पक्षपात है। विचार रखें, लेकिन विचारों के प्रति अहंकार न रखें। दूसरों की बात को सहजता से सुनने का सामर्थ्य रखें।

 

*अहिंसा : जीव की गरिमा की स्वीकार्यता*

अहिंसा पर शेखावत ने कहा कि अहिंसा केवल प्रहार न करना नहीं है, बल्कि यह हृदय में सहिष्णुता की पराकाष्ठा का भाव है। “अहिंसा परमो धर्मः का अर्थ है करुणा को जीवन का स्वाभाविक अंग बनाना।” हमें अपनी वाणी और कर्म से किसी को दुःख या पीड़ा नहीं देनी चाहिए। शेखावत ने जैन दर्शन के अपरिग्रह और संयम के सिद्धांतों को आज के युग के लिए अत्यंत प्रासंगिक बताया। उन्होंने कहा कि “अधिकतम उपभोग” के पश्चिमी दर्शन के विपरीत, भारतीय दर्शन संतुलन सिखाता है। उन्होंने इस सिद्धांत को प्रधानमंत्री द्वारा वैश्विक मंच पर दिए गए ‘मिशन लाइफ’ से जोड़ते हुए कहा कि यह हमारी संस्कृति से निकला हुआ एक ऐसा समाधान है जो पर्यावरण के प्रति उत्तरदायित्व और सह-अस्तित्व सिखाता है।

 

*प्रेक्षा ध्यान और सांस्कृतिक पुनर्जागरण*

केंद्रीय मंत्री शेखावत ने छात्रों को प्रेक्षा ध्यान की अवधारणा को जीवन में उतारने का आह्वान किया, जिसका अर्थ है, “देखो बिना विकार के, सुनो बिना प्रतिशोध के और सोचो बिना अहंकार के।” उन्होंने कहा कि प्रेक्षा ध्यान आज की अनेक चुनौतियों का समाधान है, जिससे क्रोध शांत होता है और निर्णय स्पष्ट होते हैं। शेखावत ने कहा कि भारत आज एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण के दौर से गुज़र रहा है, जहां पाली, प्राकृत, ब्राह्मी जैसी भाषाओं के साथ-साथ भारत के ज्ञान, योग, आयुर्वेद और संस्कृति की स्वीकार्यता पूरे विश्व में नए सिरे से स्थापित हो रही है। विकसित भारत तभी बन सकता है, जब हम सशक्त और सुसंस्कृत युवा शक्ति का सृजन करें।

B9News24
Author: B9News24

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